कपास में चेपा

हरियाणा के किसान इस रस चूसक कीट को अळ व माँहू के नाम से भी पुकारते हैं | अंग्रेज इसे aphid कहते हैं | हरियाणा प्रान्त में कपास की फसल में यह कीड़ा अगस्त के महीने में नजर आने लगता है व फसल की अंतिम चुगाई तक बना रहता है | इस कीट के अर्भक एवं प्रौढ़ पौधों की फुंगलों तथा तरुण पत्तियों की निचली सतह से रस चूसते हैं | इनके अधिक ग्रसन से पौधों की जीवन शक्ति कमजोर हो जाती है |

परिणामस्वरूप पौधे निस्तेज हो जाते हैं | ग्रसित पत्तियां प्राय: हरिमाहीन हो जाती हैं और ऊपर की ओर मुड़ जाती हैं तथा अंत में सुख भी जाती हैं | इसके अलावा पत्तियों एवं फुंगलों पर इन कीड़ों द्वारा छोड़े गये मधुरस पर कला कवक रोग भी पनपता है जो पौधों की भोजन निर्माण प्रक्रिया में बाधा उत्पन करता है | इस कीट के मुखांग पौधे के विभिन भागों से रस चूसने के मुताबिक ही बने होते हैं | इस कीड़े के शारीर के पिछले हिस्से पर दो सिंगनुमा अंग होते हैं, जिनसे ये कीट मोम्मिया स्राव निकलते हैं |

पतली एवं लम्बी टाँगें होने के बावजूद भी ये कीट तेज़ी से नही चल पाते, बल्कि एक जगह पड़े-पड़े ही पौधों का रस चूसते रहते हैं | वैसे तो इस कीड़े के अर्भक एवं प्रौढ़ दोनों ही अनिषेचित रूप से प्रति दिन आठ से बाईस अर्भक पैदा करते है पर शरद ऋतु के प्रोकोप से बचने के लिए चेपे की प्रौढ़ मादाएं, जमीन पर तरेड़ों में निषेचित अंडे देती हैं | बसंत ऋतु में जाकर अंडविस्फोटन होता है और इनसे निकलने वाली पंखविहीन मादाएं फिर अनिषेचित प्रजनन शुरू करती हैं | यह अलैंगिक प्रजनन प्रक्रिया बहुत तेज़ होती है | इस कीड़े की अर्भकीय अवस्था लगभग सात से नौ दिन तथा प्रौढीय अवस्था सौहला से बीस दिन की होती है |

यह चेपा कपास के अलावा घिया-तौरी, ईंख, ज्वार, गेहूं, सरसों, मिर्ची, भिंडी व् बैंगन आदि पर भी आक्रमण करता है |
कपास की फसल में फूलने-फलने की एक तरफा छुट तो इस कीड़े को भी प्रदान नही की प्रकृति ने | हमारे यहाँ के कपास-तंत्र में इस कीड़े को खाकर अपना गुज़र-बसर करने वाली दस तरह की लेडी बीटल, दो तरह के कराईसोपा, ग्यारह किस्म की मकड़ियाँ, पाँच प्रकार की सिरफड़ो मक्खियाँ व् भांत-भांत के भीरड़-ततैये किसानों द्वारा मौके पर देखे गये हैं |

चेपे को उछाल-उछाल कर खाते हुए सिरफड़ो के मैगट को किसानों ने स्वयं देखा है व इसकी वीडियो बनवाई हैं | दीदड़ बुग्ड़े के प्रौढ़ एवं शिशु भी इस चेपे का खून पीकर गुज़ारा करते देखे गये हैं। मोयली नामक सम्भीरका को अपने बच्चे इस चेपे के पेट में पलवाते हुए निडाना के रणबीर मलिक ने खुद के खेत में देखा है |

बिराने बालक पालने के चक्कर में यह चेपा तो जमाएँ चेपा जाता है | अपने इन लक्षणों एवं काम के कारण यह मोयली भी फसल में उपलब्ध मुफ्त का एक कीटनाशी हुआ | रणबीर मलिक व मनबीर रेड्हू तो इस मोयली को पपेवा पेस्टीसाइड कहते है | जी, हाँ! पराये पेट पलने वाला ! पेस्टीसाइड |